हेलों दोस्तों, कैसे हो ?
आप सभी का स्वागत है, आपके इस ब्लॉग में आज का यह पोस्ट उन सभी विद्यार्थियों/अभ्यार्थियों के लिए तैयार किया गया है जो हिन्दी शीघ्रलेखन/मुद्रलेखन परीक्षाओं की तैयारी कर रहे है। यह पोस्ट विभिन्न परीक्षाओं के प्रश्न-पत्रों के प्रारूप ध्यान में रखते हुए तैयारी की गई है, जिसमें आपको डिक्टेशन की वीडियो एवं डिक्टेशन का मैटर यहां पर दिया गया है ताकि आप सभी अभ्यर्थी वीडियो के माध्यम से डिक्टेशन करने के उपरांत नीचे दिये गये मैटर से उसका मिलान कर सके और अपनी लिखने में हुई गलतियों को सुधार सके। यह डिक्टेशन अत्यधिक महत्वपूर्ण है, और यह आपकी आगामी प्रतियोगिता परीक्षाओं को उत्तीर्ण कराने में सहायक होगी।
👉 डिक्टेशन लिखते समय यह आवश्यक है कि प्रतियोगी परीक्षार्थी को पूर्ण रूप से एकाग्रचित होकर डिक्टेशन लिखना चाहिए। डिक्टेशन लिखते समय जितने समय के लिए एकाग्रचित्ता भंग उतनी ही त्रुटियाँ अधिक होगी।
👉 डिक्टेशन का अनुवाद करते समय किसी अन्य सहयोगी की मदद बिल्कुल नहीं लेना चाहिए, जरूरी नहीं है कि आपके पास बैठे व्यक्ति को शब्द की सही स्थिति का ज्ञान हो, अत: पूरा अनुवाद आत्म-निर्भर होकर ही करना चाहिए।
यह वीडियों हिंदी डिक्टेशन 100 WPM में अनुभवी मार्गदर्शन की देखरेख में तैयार किया गया है। आपकी सफलता की मंगल कामना के साथ! ✌
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वीडियों हिंदी डिक्टेशन मैटर 100 WPM PART-1 ।। गति परीक्षाओं में प्रयुक्त प्रश्न-पत्र
अध्यक्ष महोदय, शिक्षा के माध्यम के सम्बन्ध में इस सदन में कई सदस्यों ने अपने विचार रखे हैं। सबसे पहले मैं अध्यक्ष महोदय तथा/सदन का ध्यान इस बात की ओर दिलाना चाहता हूँ कि शिक्षा कई माध्यमों के द्वारा दी जा सकती है। जितनी विचारधाराएँ के//माध्यम के सम्बन्ध में हैं, चाहे प्रकृति का सौंदर्य हो, चाहे ललित कला हो, चाहे खेलकूद हो, चाहे श्रम हो और चाहे भाषा हो,///उन सभी माध्यमों का इस्तेमाल करके हमें अपने विद्यार्थियों को ऐसी शिक्षा प्रदान करनी चाहिए जिससे उनके व्यक्तित्व का चहुँमुखी विकास (1) हो सके। इन सब माध्यमों में भाषा का भी अपना एक महत्व है। लेकिन अफसोस है कि आजकल हम केवल भाषा को ही शिक्षा/ का माध्यम बनाकर चले जिसका नतीजा यह हआ कि केवल किताबी शिक्षा ही हम अपने बच्चों को दे पाये और केवल किताबी शिक्षा// से न उनके व्यक्तित्व का ही सम्पूर्ण विकास हो पाता है और न हम अपनी शिक्षा को ही अच्छे स्तर पर ले जा सकते///हैं। इसलिए मैं निवेदन करना चाहता हूँ कि भाषा के अलावा अन्य जितने माध्यम शिक्षा के हैं उन सब माध्यमों को हमारी शिक्षा प्रणाली (2) में उचित स्थान दिया जाना चाहिए।
जहाँ तक भाषा का प्रश्न है दुनिया के सारे शिक्षा शास्त्री और हमारे कमीशन में भी जो शिक्षा शास्त्री थे/उनकी भी यही राय थी कि शिक्षा का माध्यम अगर कोई भाषा हो सकती है तो वह मातृभाषा हो सकती है। मातृभाषा//के अतिरिक्त अगर अन्य किसी भाषा में शिक्षा दी जाती है तो वह शिक्षा अच्छी नहीं कही जा सकती। उसमें बच्चों की शक्ति की///बहुत हानि होती है। जो शिक्षा हम मातृभाषा के माध्यम से पाँच साल में दे सकते हैं वह दूसरी भाषा के माध्यम से हम (3) पंद्रह साल में भी नहीं दे सकते। यदि यह बच्चे की मातृभाषा नहीं है तो उस भाषा में शिक्षा प्राप्त करने के लिए बच्चे/को बहुत अधिक अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ेगी तथा अधिक समय भी देना पड़ेगा जबकि मातृभाषा के माध्यम से वह बहुत कम समय में//और बहुत कम मेहनत से शिक्षा प्राप्त कर सकता है। इसलिए आज जो लोग कहते हैं कि शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी रखा जाय वह///देश की शिक्षा के बहुत बड़े दुश्मन हैं, क्योंकि मातृभाषा को छोड़कर अगर अंग्रेजी में शिक्षा दी जाती है तो शिक्षा का (4) कभी भी विकास नहीं हो सकता। यदि हम चाहते हैं कि देश के करोड़ों बच्चों को देश के कोने-कोने में शिक्षा दी जाये तो/केवल मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाना होगा।
हमारे कुछ दक्षिण के भाई हिन्दी से नाराज हैं लेकिन अंग्रेजी से उनका माह हमारी//समझ में नहीं आता। अंग्रेजी से मोह केवल कुछ लोगों को ही है सारे दक्षिण भारत के लोगों को अंग्रेजी से मोह नहीं है। अंग्रेजी///से मोह केवल उन्हीं लोगों को है जिन्होंने बहुत पहले अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त की थी और जो आज हमारी सरकारी सेवाओं में ऊँचे पदों पर हैं।
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